Saturday 30 May 2020

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*"ऊँचा उठने के लिए पंखों की*
 *ज़रुरत केवल पक्षियों को ही*
 *पड़ती है.....*

*मनुष्य भी जितना विनम्रता से*
 *झुकता है उतना ही ऊपर*
 *उठता है"...।

Sunday 24 May 2020

गांव अब पहले जैसे नहीं रहे....

Sunday special 
ये जो तस्वीर है वो दो भाइयों के बीच बंटवारे के बाद की बनी हुई तस्वीर है। बाप-दादा के घर की देहली को जिस तरह बांटा गया है वह समाज के हर गांव-घर की असलियत को भी दर्शाता है।

दरअसल हम गांव के लोग जितने खुशहाल दिखते हैं उतने हैं नहीं। जमीनों के केस, पानी के केस, खेत-मेढ के केस, रास्ते के केस, मुआवजे के केस, व्याह शादी के झगड़े, दीवार के केस,आपसी मनमुटाव, चुनावी रंजिशों ने समाज को खोखला कर दिया है। 
अब गांव वो नहीं रहे कि बस में गांव की लडकी को देखते ही सीट खाली कर देते थे बच्चे। दो चार थप्पड गलती पर किसी बुजुर्ग या ताऊ ने टेक दिए तो इश्यू नहीं बनता था तब।

अब हम पूरी तरह बंटे हुए लोग हैं। गांव में अब एक दूसरे के उपलब्धियों का सम्मान करने वाले, प्यार से सिर पर हाथ रखने वाले लोग संभवत अब मिलने मुश्किल हैं। 
हालात इस कदर खराब है कि अगर पडोसी फलां व्यक्ति को वोट देगा तो हम नहीं देंगे। इतनी नफरत कहां से आई है समाज के लोगों में ये सोचने और चिंतन का विषय है। गांवों में आजकल कितने झगडे होते हैं और कितने केस अदालतों व संवैधानिक संस्थाओं में लंबित है इसकी कल्पना भी भयावह है। 
संयुक्त परिवार अब गांवों में एक आध ही हैं, लस्सी-दूध जगह वहां भी कोल्ड ड्रिंक पिलाई जाने लगी है।

बंटवारा केवल भारत का नहीं हुआ था, आजादी के बाद हमारा समाज भी बंटा है और शायद अब हम भरपाई की सीमाआें से भी अब दूर आ गए हैं। अब तो वक्त ही तय करेगा कि हम और कितना बंटेंगे। 

एक दिन यूं ही बातचीत में एक मित्र ने कहा कि जितना हम पढे हैं दरअसल हम उतने ही बेईमान बने हैं। गहराई से सोचें तो ये बात सही लगती है कि पढे लिखे लोग हर चीज को मुनाफे से तोलते हैं और ये बात समाज को तोड रही है।

Friday 15 May 2020

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कमजोरियां मत खोज मुझ में मेरे दोस्त!
एक तू भी शामिल है मेरी कमजोरियों में!

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मुझे गलत समझने से पहले, 
आप संतुष्ट हो जाओ कि आप सही हो।

Thursday 14 May 2020

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हर रोज गिरकर भी मुकम्मल खड़े हैं,

ऐ जिन्दगी देख मेरे हौसले तुझसे बड़े हैं..

Tuesday 5 May 2020

शराब

आज समझ आया शराब भी बड़े कमाल की चीज है दोस्तो 
अगर 
फ्री में मिले तो सरकार बन जाती है...
और 
पैसे देकर पिओ तो अर्थव्यवस्था चल जाती है...

चाकू.. खंजर.. तीर और, तलवार....

  " चाकू .. खंजर . .                            तीर और,                                               तलवार ..                        ...