Sunday 24 May 2020

गांव अब पहले जैसे नहीं रहे....

Sunday special 
ये जो तस्वीर है वो दो भाइयों के बीच बंटवारे के बाद की बनी हुई तस्वीर है। बाप-दादा के घर की देहली को जिस तरह बांटा गया है वह समाज के हर गांव-घर की असलियत को भी दर्शाता है।

दरअसल हम गांव के लोग जितने खुशहाल दिखते हैं उतने हैं नहीं। जमीनों के केस, पानी के केस, खेत-मेढ के केस, रास्ते के केस, मुआवजे के केस, व्याह शादी के झगड़े, दीवार के केस,आपसी मनमुटाव, चुनावी रंजिशों ने समाज को खोखला कर दिया है। 
अब गांव वो नहीं रहे कि बस में गांव की लडकी को देखते ही सीट खाली कर देते थे बच्चे। दो चार थप्पड गलती पर किसी बुजुर्ग या ताऊ ने टेक दिए तो इश्यू नहीं बनता था तब।

अब हम पूरी तरह बंटे हुए लोग हैं। गांव में अब एक दूसरे के उपलब्धियों का सम्मान करने वाले, प्यार से सिर पर हाथ रखने वाले लोग संभवत अब मिलने मुश्किल हैं। 
हालात इस कदर खराब है कि अगर पडोसी फलां व्यक्ति को वोट देगा तो हम नहीं देंगे। इतनी नफरत कहां से आई है समाज के लोगों में ये सोचने और चिंतन का विषय है। गांवों में आजकल कितने झगडे होते हैं और कितने केस अदालतों व संवैधानिक संस्थाओं में लंबित है इसकी कल्पना भी भयावह है। 
संयुक्त परिवार अब गांवों में एक आध ही हैं, लस्सी-दूध जगह वहां भी कोल्ड ड्रिंक पिलाई जाने लगी है।

बंटवारा केवल भारत का नहीं हुआ था, आजादी के बाद हमारा समाज भी बंटा है और शायद अब हम भरपाई की सीमाआें से भी अब दूर आ गए हैं। अब तो वक्त ही तय करेगा कि हम और कितना बंटेंगे। 

एक दिन यूं ही बातचीत में एक मित्र ने कहा कि जितना हम पढे हैं दरअसल हम उतने ही बेईमान बने हैं। गहराई से सोचें तो ये बात सही लगती है कि पढे लिखे लोग हर चीज को मुनाफे से तोलते हैं और ये बात समाज को तोड रही है।

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चाकू.. खंजर.. तीर और, तलवार....

  " चाकू .. खंजर . .                            तीर और,                                               तलवार ..                        ...